पूँजीवादी कृषि के अन्तर्गत पूँजीपतियों के पास बड़े - बड़े भूखण्ड होते हैं , जिन्हें या तो वे स्वयं क्रय करते हैं या सरकार द्वारा उनकी अधिग्रहित कर दिए जाते हैं । ये पूँजीपति इन भूखण्डों पर मजदूरों की सहायता एवं आधुनिक तकनीकी एवं संसाधनों को काम में लाकर भूमि का अधिकतम उपयोग करते हैं ।
यह व्यवस्था अमेरिका व ब्रिटेन में बहुत प्रचलित है । लेकिन भारत में भी चाय, कॉफी व रबड़ के बागान में यह प्रणाली पायी जाती है । भारत में सैकड़ों वर्षों तक जमींदारी व जागीरदारी प्रथा रही , लेकिन इन्होंने कभी भी इस व्यवस्था को नहीं अपनाया अब जब कि जमींदारी व जागीरदारी समाप्त कर दी गई है।इस प्रकार की पूंजीवादी कृषि की भी सम्भावनाएँ नहीं हैं। इसके दो कारण प्रतीत होते हैं - एक तो परम्परागत भारतीय कृषि अर्थ - व्यवस्था में इसका कोई महत्त्व नहीं है । दूसरे इस प्रणाली को अपनाने से बेरोजगारी बढ़ेगी ।पूँजीवादी खेती(Capitalistic Farming)
जनवरी 24, 2021
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