कासनी का अंग्रेजी नाम : Chicory( चिकोरी )एवं वानस्पतिक नाम : Cichorium intybus है । इसको चकोरी के नाम से भी जाना जाता है, इसमें नीले रंग के पुष्प लगते हैं ।
यह एक जड़ी - बूटी है जिसके कई तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं । चिकोरी की जड़ को यूरोप में आमतौर पर कॉफी के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है । क्योंकि इसमें कैफीन नहीं होता है और इसका स्वाद चॉकलेट की तरह होता है । यदि इसे कॉफी के साथ प्रयोग किया जाए तो यह कैफीन के प्रभावों को रोकता है ।भारत में कासनी उत्तर प्रदेश , उत्तराखण्ड , पंजाब , कश्मीर में पाया जाता है । मुख्य रूप से कासनी की जड़ को औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है । कासनी का सेवन भूख की कमी , पेट में परेशानी , कब्ज , दिल की तेज धड़कन और इसका प्रयोग कैंसर जैसी भयानक बीमारियों में औषधि के रूप में किया जाता है,इसके अलावा कासनी को कई अन्य स्थिति के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है ।इसका प्रयोग हरे चारे के लिये भी किया जाता है
मौसम एवं जलवायु- यह रबी मौसम की फसल है इसके लिये सीतोष्ण एवं समसीतोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है।
उपयुक्त मृदा- चिकोरी सभी प्रकार की मृदाओं जिनमें उपयुक्त जल निकास हो की जा सकती है लेकिन इसके लिए बलुई दोमट मृदा जिसका पीएच मान 6.5 - 7.5 के मध्य हो उपयुक्त रहती है।
तापमान- चिकोरी की खेती के लिए सामान्य तापमान उपयुक्त होता है शुरुआत में इसके पौधों को अंकुरण के लिए 25 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है , उसके बाद इसके पौधे 10 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर लेते हैं जबकि इसकी फसल के पकने के दौरान पौधों को 25 से 30 डिग्री के बीच तापमान की जरूरत होती है ।
उन्नत प्रजातियां-
जंगली प्रजाति- कासनी की जंगली प्रजाति की बुवाई हरे चारे के लिए की जाती है इसकी पत्तियों का स्वाद हल्का कड़वा तथा कंद सामान्य तौर पर कम मोटे होते हैं। इसका पौधा एक बार लगने के बाद कई कटाई देता है।
व्यापारिक प्रजाति- व्यापारिक प्रजाति की किस्मों को फसल के रूप में उगाया जाता है। इसका पौधा बुवाई के लगभग 140 दिन बाद खुदाई के लिये तैयार हो जाता है इसके जड़ों का स्वाद हल्का मीठा होता है।
K - 1 इस किस्म के पौधों की जड़े नुकीली शंकु की तरह होती हैं एवं रंग भूरा और गुदा सफ़ेद होता है। इन पौधों को उखाड़ते समय K - 13 की अपेक्षा जड़ें अधिक टूटती हैं।
K - 13 इस किस्म के पौधों की जड़े गठीली और गुदा सफ़ेद होता है इन पौधों को उखाड़ते समय जड़ें काम टूटती हैं। जिससे उत्पादन बढ़ जाता है।
खेत की तैयारी - खेत में पिछली फसलों के अवशेषों को नष्ट कर दें , खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा कर दें तथा उचित जल निकस बनाकर बीज बुवाई के लिये क्यारियां बनानी चाहिए |
बीज दर - 1200 ग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त रहता है |
बुवाई की विधि एवं समय- बीज की बुवाई छिटकवाँ विधि से की जाती है। बीज अधिक छोटा होने के कारण इसे मिट्टी या पोटाश में मिलकर बोया जाता है।कुछ किसान इसे पंक्तियों में बोते हैं।बुवाई के बाद बीज को हल्के हाथ से मिट्टी में मिला देते हैं।बीज 1-2 cm से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिये इससे बीज के अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
बीज की बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह से 15 नवम्बर तक कर देनी चाहिए ।
सिंचाई- पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिये।
चारे के लिए 7-8 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए एवं व्यापारिक स्तर पर कासनी की सिंचाई 20- 25 दिन के अंतराल पर करनी चाहिये। यदि फसल बीज के लिये बोई है तो फसल में फूल तथा बीज बनते समय सिंचाई का अंतराल कम कर देना चाहिये।
खाद एवं उर्वरक - व्यापारिक खेती के लिये लगभग 10 टन साड़ी हुई गोबर की खाद बीज की बुवाई से पूर्व खेत में बिखेर देनी चाहिये। लगभग 120 किलो नाइट्रोजन, 100 किलो फास्फोरस एवं 60 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिये। नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व खेत में बिखेरकर जुताई कर देनी चाहिये एवं नाइट्रोजन की शेष मात्रा खड़ी फसल में देनी चाहिए।
चारे के लिए बोई फसल में लगभग 20 किलो नाइट्रोजन प्रति 2 कटाई के बाद प्रति हैक्टेयर देनी चाहिये।
खरपतवार नियंत्रण - चारे के लिये बोई फसल में खरपतवार नियंत्रण की कोई आवश्यकता नहीं होती लेकिन व्यापारिक स्तर पर खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता होती है खरपतवार नियंत्रण निराई गुड़ाई करके किया जाता है पहली निराई बीज की बुवाई के 25-30 दिन बाद एवं दूसरी निराई - गुड़ाई पहली निराई के 25 - 30 दिन बाद करनी चाहिये इसके बाद निराई करने से जड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
मिट्टी चढ़ाना - पौधों की जड़ें बनते समय मिट्टी चढ़ानी चाहिये ये काम महीने में दो बार करना चाहिये जिससे जड़ों का विकास अच्छा हो सके। कीट नियंत्रण -
बालदार सुंडी कासनी के पौधों में बालदार सुंडी का प्रकोप पौधों पर शुरुआत में अगेती पैदावार के दौरान देखने को मिलता है, इसकी सुंडी पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नुकसान पहुँचाती हैं जिससे पौधों का विकास रुक जाता है इस सुंडी की रोकथाम के लिए अगर फसल हरे चारे के लिए लगाई गई हो तो नीम के तेल और सर्फ के घोल का छिडकाव करना चाहिए इसके अलावा फसल व्यापारीक तौर पर उगाई गई हो तो मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव भी लाभदायक होता है।
रोग नियंत्रण -
जड़ गलन - जड़ गलन का प्रभाव पौधों में अधिक नमी की वजह से दिखाई देता हैं, इसके लगने से इसकी पैदावार एवं गुणवक्ता में काफी नुकसान पहुँच सकता है इसकी रोकथाम के लिए पौधों में पानी का भराव अधिक ना होने दें इसके अलावा आरम्भ में खेत की जुताई के वक्त खेत में नीम की खली का छिडकाव कर मिट्टी में मिला देनी चाहिये।
फसल की कटाई - कासनी की फसल की कटाई अलग -अलग इस्तेमाल के लिए अलग - अलग तरह से की जाती है, हरे चारे के रूप में इस्तेमाल के लिये इसके पौधे बीज बुवाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं, हरे चारे के रूप में इसके पौधों की एक बार बुवाई के बाद 10 से 12 कटाई आसानी से की जा सकती है , क्योंकि इसके पौधे 12 से 15 दिन बाद फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं, जबकि पैदावार के रूप में इसकी फसल की खुदाई जब जड़ों का आकार अच्छा दिखाई देने लगे तब कर लेना चाहिए।इसकी जड़ें बीज बुवाई के लगभग चार से पाँँच महीने बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है , इस दौरान इसकी जड़ों की खुदाई कर लेनी चाहिए लेकिन अगर किसान इसका बीज बनाना चाहता है तो वो इसके पौधों की खुदाई बीजों की कटाई के बाद कर सकता है इसके बीजों के रूप में कटाई दो से तीन बार में की जाती है , क्योंकि इसके दाने एक साथ पककर तैयार नहीं होते इसकी जड़ों की खुदाई के बाद उन्हें साफ़ पानी से धोकर बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है , और बीजों को मशीन की सहायता से निकाल लिया जाता है।
उपज - जड़ों का उत्पादन लगभग 350 - 400 कुुंतल प्रति हेक्टेयर हो जाता है एवं बीज का उत्पादन लगभग 08 -10 कुुंतल प्रति हेक्टेयर हो जाता है।
बाजार - कासनी की खेती अधिकतर कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर होती है इसलिए जिस कंपनी एवं संस्था से कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है वह बीज देते समय ही फसल का मूल्य तय करती है एवं उसी तय मूल्य पर फसल संस्था या कंपनी को देनी पड़ती है। हरी जड़ों का भाव लगभग 425 रूपए प्रति कुंतल एवं जड़ों को काटकर(गट्टे बनाकर) सुखाने के बाद लगभग 1750 रूपए प्रति कुंतल का भाव मिल जाता है।
नोट- किसी भी कंपनी एवं संस्था से कॉन्ट्रेक्ट करते समय उसकी नियम व शर्तें अवश्य पढ़ लें।
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