यह संगठन का वह रूप है जिसमें दो या दो से अधिक कृषक सहकारी नहीं बल्कि आपसी साझेदारी के आधार पर अपने कृषि संसाधनों को संयुक्त करके कृषि कार्य करते हैं , जो लाभ या उत्पादन होता है , उसे बराबर - बराबर या किसी पूर्व निश्चित अनुपात में बाँट लेते हैं
खेती का आकार बड़ा होने से बड़े पैमाने की खेती के लाभ प्राप्त हो जाते हैं । श्रम विभाजन का लाभ भी मिल जाता है । इस प्रणाली में समुचित निर्णय लिए जा सकते है , क्योंकि साझेदार कृषक परस्पर विचार - विमर्श करके ही निर्णय लेते है । लेकिन इनमें उत्तरदायित्व की सीमा न होने की सम्भावना बनी रहती है ।
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