इस प्रकार की काश्ताकारी खेती को कृषक स्वामित्व खेती के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है । इस प्रणाली के अन्दर किसान का राज्य से सीधा सम्बन्ध होता है । वह स्वयं भूमि का मालिक होता है और उसको स्थायी , पैतृक , हस्तान्तरण के अधिकार प्राप्त होते हैं तथा वह निर्धारित मालगुजारी राज्य सरकार को देता है ।
कृषि का सभी कार्य किसान अपनी इच्छा से करता है । इस प्रणाली की खेती सदैव ही श्रमिकों को अधिकतम रोजगार तथा अधिकांश व्यक्तियों को स्वतन्त्र रूप से जीविका प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है । इस प्रणाली की खेती से समाज में आत्मसम्मान की भावना तथा कृषि उपज में वृद्धि होती है और किसानों को भूमि के प्रति मोह की भावना भी बनी रहती हैव्यक्तिगत या काश्तकारी खेती(Individual or Peasant Farming)
जनवरी 24, 2021
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