टमाटर की खेती ( Cultivation of Tomato )
उद्भव ( Origin ) - टमाटर के दक्षिण अमेरिका के पीरु तथा बोलीविया उद्भव केन्द्र ( The South American Peruvian - Bolivian Centre of Origin ) माने जाते हैंं ।
वितरण ( Distribution ) - सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में स्पेनीश अन्वेषकोंं द्वारा टमाटर यूरोप में लाया गया । यूरोपियन लोगों द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा में इसका प्रवेशन हुआ । भारत में यह पुर्तगालियों द्वारा लाया गया । हालांकि इसके समय का ठीक निश्चय नहीं है । भारत में टमाटर की खेती लगभग 36,000 हैक्टर में की जाती है ।
वर्गिकी एवं किस्में ( Taxonomy and Varieties)- टमाटर सोलेनेसी ( Solanaceae ) कुल का पौधा है । इसकी प्रजाति Lycopersicon ' है । इसकी बहुत - सी जातियाँ है । परन्तु esculantum खाने योग्य फल उत्पन्न करती है । दूसरी छोटे फलों वाली जाति pimpinellifolium प्रजनन के लिये उपयोगी है । भारत में इसकी बहुत - सी किस्में प्रचलित है । मुख्य किस्में निम्न प्रकार की हैं - पूसा रुबी , पूसा अर्ली डवारफ , ऑफ ऑल , सोयू ( Sious ) , मारग्लोब , फायर बाल , SI 120 . इटेलियम रैड , पियर , रोमा , प्रिचारड , आक्स हार्ट , डेविलिनम , चायस , देशी डिक्सन , Pb 12 रैड कलाउड , वरल्ड बीटर सटेन्स परफैक्शन , सटेन्स गोल्डन क्वीन प्रौसपैरिटी , पान अमेरिकन , मेरटी , गैमेड , SL 152 , स्वीट 72 S.12 , HS102 , HS . 101 ।
टमाटर में संकर ओज ( hybridvigour ) भी पायी जाती है । पूसा रुबी तथा बैस्ट आफ आल को F1हाईब्रिड की इनके पित्रज से 20% तक अधिक उपज होती है । टमाटर में हाईब्रिड उत्पन्न करने का व्यापक क्षेत्र है । सदाबहार , प्रिति , गुलमोहर सोनाली इत्यादि संकर किस्मे है ।
जलवायु ( Climate ) - यह गर्म मौसम की फसल है । यह ठन्डी जलवायु मे भी हो जाता है , परन्तु यह पाला
( frost) सहन नहीं करता है । हालांकि यह 18 ° C से 27 °C तक तापक्रम विस्तार में हो जाता है । परन्तु इसकी वृद्धि के लिये दैनिक औसतन तापमान 21 ℃ से 23 °C है । तापक्रम तथा प्रकाश की सघनता फल बनने को प्रभावित करती है । इससे फलो में रंग लाइकोपीन ( Lecopene ) का विकास भी प्रभावित होता है । तथा फलोंं का पोषक मान भी काफी हद तक प्रभावित होता है ।
भूमि ( Soil ) - टमाटर के लिये हल्की दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है । मृदा वातन ( Soil aeration ) एवं जल निकास अच्छा होना चाहिए । अम्लीय भूमि टमाटर के लिये अच्छी नहीं होती है इसलिए अम्लीयता होने पर भूमि में चूना मिलाना लाभप्रद होता है । टमाटर के लिये मृदा pH 6.0 से 7.0 सर्वोत्तम होता है ।
बीज की दर ( Seed Rate ) - एक ग्राम भार में लगभग 300 बीज होते है । एक हैक्टर के लिए लगभग 400 ग्राम बोज काफी होता है ।
नरसरी (Nursery ) - अच्छी प्रकार से तैयार की गई नरसरियों में बीज बोया जाता है । इसके लिये 6 इंच ऊपर उठी , 3 फीट चौड़ी तथा 6 फीट लम्बी क्यारियाँ तैयार की जाती है । मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए । मिट्टी के ऊपर एक इंच मोटी तह सड़ी हुई बारीक गोबर की खाद डालकर अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिए ।
बीज बोने का समय ( Time of Sowing Seed ) नरसरी में बीज बोने के समय निम्न प्रकार है -
( अ ) उत्तरी भारत में दो बार बीज की बुवाई की जाती है ।
1. शरद् - शिशिर फसल ( Autumn - Winter crop ) के लिए बीज जून - जौलाई में बोया जााता है।
2. बसन्त - ग्रीष्म फसल ( Spring - Sumumer crop ) - के लिए बीज नवम्बर में बोया जाता है ।
( ब ) देश के उन भागों में जहाँ पाला नहीं पड़ता है , वहाँ पर बीज की बुवाई केवल एक बार जुुलाई - अगस्त में की जाती है
( स ) पहाड़ी क्षेत्रों में बीज मार्च - अप्रैल में बोया जाता है ।
पौधे लगाना ( Transplanting) - टमाटर के पौधे। 4 -5 सप्ताह के बाद रोपने योग्य हो जाते हैं । इस समय तक पैधों की लम्बाई लगभग 10 सेमी० हो जाती है तथा वे काफी सख्त हो जाते हैं । पौधों को अधिक सख्त बनाने के लिये( Hardening ) बीच - बीच में कभी सिंचाई रोक देते है जिससे कि वे खुले मौसम के अनुकूल हो जायेंं ।
फासला ( Spacing ) -1 . शरद् - शिशिर फसल के लिए 75 × 60 से ० मी ०
2. बसन्त - ग्रीष्म फसल के लिए 75×45 से. मी. रखा जाता है ।
खाद एवं उर्वरक ( Mamure and Fertilizer ) - टमाटर को जल्दी मिलने वाले पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है । टमाटर को सगभग 75 किग्रा नत्रजन ( N ) 60 किग्रा० फास्फोरस ( P ) तथा 80 किग्रा० पोटाश ( K ) की आवश्यकता पड़ती है । इस आवश्यकता की पूर्ती इस प्रकार से करनी चाहिये ।
1. खेत की तैयारी के समय 20 से 25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टर अच्छी प्रकार मिट्टी में मिला देनी चाहिये।
2.125 किग्रा० अमोनियम सल्फेट , 80 किग्रा० पोटेशियम सल्फेट तथा 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट पौधे रोपण के समय पौधों की जड़ो के पास डालनी चाहिये ।
3. लगभग एक माह पश्चात 125 किग्रा० अमोनियम सल्फेट का topdressing कर देना चाहिये ।
4. टमाटर के लिए उर्वरकों के घोल का पौधों पर छिड़काव लाभप्रद साबित हुआ है । इसके लिए 40 किग्रा. फास्फोरस का घोल के रूप में 3,4 बार छिड़काव किया जा सकता है ।
सिंचाई - टमाटर के लिये निश्चित तथा उचित समय पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि सिंचाई की कमी तथा अधिकता दोनों ही पौधो लिये घातक है । पौधों को आवश्यकता के अनुसार ही पानी देना चाहिये । स्टेक ( Staked ) वाली फसल की
प्रति 5 से 7 दिन बाद सिंचाई करनी चाहिये । जमीन की फसल ( Ground crop ) को प्रति 10 दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए ।
निराई - गुड़ाई - नयी लगाई गई फसल के प्रत्येक सिंचाई के बाद खुुुर्पी अथवा हैंंड हो ( hand hoe ) से हल्की निराई करनी चाहिये , जिससे ऊपर की भूमि भुरभुरी हो जाये तथा खरपतवार समाप्त हो जाये । नमी बनाये रखने के लिये घास - फूस अथवा काली पोलीथिन से मल्चिंग ( mulching ) करना लाभप्रद प्रमाणित हुआ है ।
कीट एवं नियंत्रण
1. टोबैको कैटरपिलर ( Tobacco Caterpillar ) - काले - भूरे रंग के मजबूत कैटरपिलर होते है । ये पत्तियों , फलों एवं फूलों को खा जाते है
नियन्त्रण -● इनके अण्डों के समूह तथा कैटरपिलर को एकत्र कर जला देना चाहिये ।
● एल्ड्रीन का दो सप्ताह के अन्तर से छिड़काव करना चाहिये ।
2. टमाटर के फल कीट ( Tomata fruit Worm ) - यह अत्यधिक हानिकारक कीट है । इसके कैटरपिलर पत्तियों तथा अन्य कोमल भागों को खा जाते है । फलों को काटकर उनमेंं छेद कर देते है ।
नियन्त्रण -● प्रभावित भागोंं को एकत्र कर जला देना चाहिये ।
●D.D.T. के 0.1 % घोल का 15 दिन के अन्तर से छिड़काव करना चाहिये ।
3. इपीलैकना वीटिल ( Epilachna Beetle ) - इनके लारवा तथा कीट ( adults ) पत्तियाँ खा जाते है । नियन्त्रण-● लारवो तथा कीटोंं को पकड़ कर मार देना चाहिये ।
● DD.T. के 0.1 % घोल का छिड़काव करते रहना चाहिये ।
इसके अलावा जैसिड्स तथा दीमक भी टमाटर की फसल को नुकसान पहुंचाती है ।
काट - छांट एवं ट्रेनिंग ( Pruning and Training ) - अगेती फसल लेने के लिये अक्सर स्टेकिंंग (staking ) किया जाता है । एक तनेे पर अधिकतर स्टेकिंंग किया जाता है । पार्श्व अक्ष ( lateral axis ) को चुनकर तोड़ दिया जाता है टमाटर में ट्रेनिंग की गई फसल व्यायायिक रूप से नहीं उगायी जा सकती है , क्योंकि खर्च तथा श्रम अधिक लगता है । आपेक्षित उपज भी अधिक नहीं होती है । स्टेक की गयी फसल के फलोंं पर सूर्य का प्रकाश सीधा पड़ता है । जिससे उन पर सूर्य जलन (sub burming ) के चकत्ते पड़ जाते है तथा फल खराब हो जाते है ।
फल आना ( Truit set ) - टमाटर में फल लगाना एक गम्भीर समस्या है यह समस्या बसंत - ग्रीष्म फसल में , बसंत के आरम्भ में कम तापक्रम ( 13℃ से कम ) के कारण होती है तथा शरद - शिशिर फसल में , शरद के प्रारम्भ में अधिक तापक्रम ( 38 ℃ से अधिक ) के कारण होती है । इसमें फूल झड जाते है तथा फल नहीं लगते है । इस समस्या का समाधान पादप नियमकों (plant regulators ) के छिड़काव से किया जा सकता है । इसके लिये पैरा - क्लोरीफिनोक्सी एसीटिक एसिड 15-20 ppm., 2-4D , 12ppm., जीब्रेलिक एसिड 50 ppm प्रभावकारी साबित हुए है ।
सलवन ( Olaneting ) - उचित आकार व परिपक्वता के फलों की लगातार तुुुडाई की जाती है फलों को तोड़ने की अवस्था का निर्धारण फलोंं के उपयोग तथा स्थानान्तरण ( transport ) की दूरी के आधार पर किया जाता है । जहाज में लदान के लिये पूर्ण विकसित हरे फल तोड़े जाते है । कम दूरी पर भेजने के लिये अर्धपरिपक्व फल तोड़ते है । डिबा - बन्दी ( canning) के लिये पूर्णपरिपक्व फल तोड़े जाते है ।
उपज (Yield)- 16 से 24 टन प्रति हेक्टर उपज हो जाती है ।
श्रेेेणीकरण ( Grading ) - भारतीय मानक संस्थान ( Indian Standard Institution - ISI ) के द्वारा इसकी निम्न चार श्रेणी मान्य हैंं - सुपर ए
( Super A) ,सुपर ( Super ) , फैंंसी ( Fancy ) तथा कमर्शियल ( Commercial) ।
भण्डारण ( Storage ) - टमाटर का सर्वोत्तम संग्रह 12-15 ° C पर होता है । परिपक्व हरे फलों को 10-15 ℃ पर एक माह तक रखा जा सकता है पूर्ण परिपक्व फलों को 4-5 ℃ पर दस दिन तक रखा जा सकता है । हिमांक ( Freezing point ) पर रखने से निम्न तापीय घाव ( low temperature injury ) उत्पन्न हो जाती है।
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