फूलगोभी की खेती

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           फूल गोभी ( CAULIFLOWER ) 
       ( Brassica oleracea Var . botrytis )



 फूल गोभी शीतकालीन फसलों में प्रमुख फसल है । इसके फूल ( curd of head ) को खाया जाता है । यह अत्यधिक निरुद्ध ( highly suppressed ) बहुत अधिक शाखीत ( extremely ramifield ) अतिवृद्धित ( hypertrophied ) पुष्पशाखा ( flower stalls ) होती है । यह पौधे के मुख्य तने का अन्तिम भाग ( terminal part ) होता है । जो कि अत्यधिक शाखित एवं फूली हुई पुष्प शाखा के रूप में समाप्त होता है ।

 किस्में ( Varieties ) - फूल गोभी के पौधे बहुत अधिक संवेदनशील ( sensitive ) होते है । इन पर तापक्रम तथा दीप्तिकाल ( Photoperiod ) का अधिक प्रभाव पड़ता है । इसलिये इसकी किस्मोंं का चयन बहुत सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिये । निश्चित तापक्रम तथा दीप्तिकाल ( Photoperiod ) के लिए निश्चित किस्में है । इस आधार पर किस्मो को अगेती , मध्यकाल तथा पछेती समूहों में रखा गया है। 

1. अगेती किस्में ( Early Varieties ) - क्वारी , अर्लीपटना , पूसा कर्तिकी , अली मार्केट , पूसा दीपाली । 

2. मध्यकाल किस्में ( Mid - season Varieties ) - अगहनी, पूसा पटना , अर्ली  स्नोबाल , ज्यांट स्नोबाल , पन्त सुधा , जापानी इम्पूड , हिसार -1,
पूसा सिन्थेटिक-11

 3. पछेती किस्में ( Late Varieties ) - दानिया , 
स्नोबाल -16, सिल्वर किंग , चाइना पियर्ल , पूसा स्नोबाल -1 , पूसा स्नोबाल -2 , 

 जलवायु ( Climate ) - फूल गोभी के लिये ठंडी , नम जलवायु सर्वोत्तम है । इसके पौधे बर्फ भी सहन कर सकते हैं , परन्तु इसका फूल ( cura ) खराब हो जाता है । इसके लिये सर्वोत्तम तापक्रम 15-20 ° C है । हालांकि यह 8 से 25 ° C तक उत्पन्न होती है । अगेती किस्मों के लिये आपेक्षित ऊंचा तापक्रम तथा लम्बे दिनों की आवश्यकता पड़ती है । मध्यकाल किस्में कम तापक्रम तथा छोटे दिन के समय में अच्छी होती है ।

भूमि ( Soil ) - फूल गोभी के लिये गहरी दोमट भूमि अच्छी होती है । भूमि उर्वरक होनी चाहिये तथा उसमेंं ह्यूमस काफी मात्रा में होना चाहिये । जल - निकास की सुव्यवस्था होनी चाहिये । फूल गोभी अम्लीय भूमियों में नहीं पनपती है । इसके लिये उपयुक्त pH 5.5-6.6 है । 

बीज की दर ( Seed Rate ) - अगेती फसल के लिये 600 से 700 ग्राम तथा पछेती फसल व मध्यकाल फसल के लिये 400-500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है । 

नरसरी ( Nursery ) - आमतौर से , इसके लिये 6 इंच ऊंची उठी , 3 फीट चौड़ी तथा 6 फीट लम्बी क्यारियाँ बनाई जाती है। नरसरी की मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिये तथा उसकी भौतिक दशा पूर्णरूपेण अच्छी होनी चाहिये । भूमि को समतल बनाकर , सड़ी गोबर की खाद एवं राख ऊपरी मृदा में अच्छी प्रकार मिला दी जाती है । बीज छिटक कर बोया जाता है । बीज को मिट्टी में मिला कर फुहारे से पानी दे दिया जाता है । नरसरी का अधिक तेज प्रकाश से रक्षण करना चाहिये । 

बीज बोने का समय ( Time of Sowing Seed ) - फूल गोभी की विभिन्न किस्मों को नरसरी में बोने का समय निम्न प्रकार है -

 1. अगेती किस्मे ( Early Varieties ) -    
मई के मध्य से जून  तक । 

2. मध्य - काल किस्में ( Mid - season ) -  
 जौलाई - अगस्त । 

3. पछेती किस्मे ( Late Varietics )
सितम्बर - अक्तूबर । 

पौध लगाना ( Transplanting ) -   4 से 6 सप्ताह की पौध खेत में लगाने योग्य हो जाती है पौध लगाने की दूरी - उर्वरक - शक्ति , मौसम तथा बाजार की मांग पर निर्भर करती है। अगेती किस्मों की पंक्ति से पक्ति तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 से ० मी ० तथा पछेती फसलों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 से ० मी ० एवं पौधे से पौधे की दूरी 45 से ० मी ० रखी जाती है।

 खाद एवं उर्वरक ( Manures and Fertilizers ) - फूल गोभी की फसल को बहुत अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है । इसे लगभग 200 किलो ग्राम नत्रजन     ( N ) , 80 कि ० ग्रा ० फास्फोरस ( P ) तथा 250 कि ० ग्रा ० पोटाश ( K ) की प्रति हैक्टर आवश्यकता पड़ती है । इस आवश्यकता की पूर्ति निम्न प्रकार से करनी चाहिये -
1. 15 से 20 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टर पौध - रोपण से एक माह पहले डाल देनी चाहिये । 

2. पोध रोपण के समय 200 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट , 200 किलोग्राम सुपर फास्फेट तथा 200 कि ० ग्रा ० पोटेशियम सल्फेट डालनी चाहिये ।

 3. 200 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट पौधे खेत में लगाने के एक माह बाद top dressing करना चाहिये । इसके 2-3 सप्ताह बाद 100 किलोग्राम अमोनियम सल्फेट का दो बार top dressing कर देना चाहिये ।

 4. फूल गोभी में कभी - कभी बोरोन तथा मोलीबिडीनम की कमी पायी जाती है । इस कमी ( deficiency ) को पूरा करने के लिये 10 से 15 किलोग्राम बोरेक्स तथा 1 से 1.5 किलोग्राम सोडियम मोलीबिडेट प्रति हैक्टर भूमि में डाल देना चाहिये । 

निराई गुड़ाई ( Interculture ) - फूल गोभी की जड़े ऊपरी भूमि में ही रहती है , इसलिये गहरी निराई नहीं करनी चाहिये । मिट्टी को भुरभुरी करने तथा खरपतवार समाप्त करने के उद्देश्य से कभी - कभी निराई - गुड़ाई करनी चाहिए। 
पौधोंं पर मिट्टी चढ़ाना फसल की उपज बढ़ाने के लिए लाभदायक रहता है ।

सिंचाई ( Irrigation ) - क्योंंकि अगेती फसल के समय तापमान अधिक रहता है , इसलिये अधिक सिचाईयों की आवश्यकता पड़ती है । इस फसल को प्रति 4-5 दिन बाद सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है ।  पछेती तथा मध्यकालीन फसल को प्रति सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता पडती है।

 ब्लान्चींग ( Blanching ) - फूल गोभी के सफेद फूल ( cure ) अधिक पसन्द किये जाते है , इसलिये जब फूल बड़ा होकर पत्तों से बाहर आ जाता है उस समय बाहर की पत्तियों को मोड़कर फूल को ढक दिया जाता है । पत्तो के फूल ( curd ) के ऊपर रबर के बैंंड से बाँध देते है । इससे फूल ( curd ) सफेद बनी रहती है । 

सलवन ( Harvesting ) - जब फूल गोभी के फूल ( curl ) उचित आकार के हो जाते हैं तो उनके सलवन ( harvesting ) का समय हो जाता है । इस बात का ध्यान रहे कि फूल ( curd ) का रंग खराब नहीं होना चाहिए तथा वह सख्त नहीं होना चाहिए । इसलिये फूलोंं को खेत में से चुन - चुनकर प्रतिदिन तोड़ा जाता है । 

श्रेणीकरण ( Grading ) - फूल गोभी की फूलों के रंग , आकार तथा गुण के आधार पर तीन श्रेणीयाँ बनायी जाती हैंं । 

संग्रहण ( Storage ) - फूल गोभी को पत्तियाँ लगे रहने पर 0 ° C एवं 80 से 90 % आपेक्षिक आर्द्रता पर लगभग एक माह तक संग्रह किया जा सकता है ।

 उपज ( Yeild ) - सामान्यतः अगेती फसल में कम उपज होती है । मध्यकालीन फसल सबसे अधिक उपज देती है । आमतौर से , 20 से 25 टन प्रति हैक्टर उपज होती है । अधिकतम उपज 50 टन प्रति हैक्टर हो सकती है ।


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