. चित्र : आय के स्रोत
बहुप्रकारीय खेती के लाभ अथवा गुण -
( 1 ) भूमि की उपजाऊ शक्ति की सुरक्षा - इस प्रकार की खेती में फसलों का समुचित हेर - फेर कर लिया जाता है , जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है ।
( 2 ) जोखिम कम - क्योकि इस प्रकार की खेती में कई प्रकार की फसलें उगाई जाती है , इसलिए जोखिम एवं हानि का डर कम रहता है ।
( 3 ) संसाधनों का समुचित उपयोग - उत्पादन के संसाधानों , भूमि , श्रम व पूँजी का पूर्ण एवं उचित उपयोग सम्भव है और साधन बेकार नहीं पड़ा रहता ।
( 4 ) उप - पदार्थों कर उचित उपयोग - विभिन्न फसलों तथा मवेशियों से प्राप्त उप - पदार्थों का सही उपयोग हो जाता है ।
( 5 ) आय में निरन्तरता - अनेक फसलों और धन्धों के होने से वर्ष भर लगातार और अधिक आय प्राप्त होती है।
( 6 ) अधिक व्यक्तियों को सहारा - इस प्रकार की खेती में अनेक प्रकार के धन्धे होने के कारण अधिक लोगों को काम मिल जाता है ।
( 7 ) अधिक ज्ञान प्राप्त करने का अवसर - कृषि सम्बन्धी अनेक क्रियाओं के विषयों में अधिक विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलता है ।
बहुप्रकारीय खेती की हानि अथवा दोष -
( 1 ) आधुनिक कृषि यन्त्रों के प्रयोग में कठिनाई - विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने एवं सहायक धन्धों के करने के लिए , विभिन्न प्रकार के कृषि यन्त्री एवं संसाधनों का जुटाना सम्भव नहीं हो पाता और यदि जुटा भी लिए जाएँ तो उनका पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता है ।
( 2 ) उपज के विपणन में कठिनाई - थोड़ी - थोड़ी मात्रा में बहुत - सी वस्तुओं का उत्पादन होने के कारण उनका विपणन में कठिनाई आती है ।
( 3 ) श्रम की अधिक आवश्यकता - बहुत - सी फसलें एक साथ उगाई जाने के कारण श्रम की एक ही समय में अधिक आवश्यकता हो जाती है और सब कार्य ठीक प्रकार से सम्पन्न करना सम्भव नहीं हो पाता ।
( 4 ) कार्यकुशलता का ह्रास - भिन्न - भिन्न प्रकार के कार्य एक साथ करने से श्रमिक की कार्यकुशलता पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।
( 5 ) प्रबन्ध में कठिनाई - फार्म पर सभी धन्धों की देखभाल एवं प्रबन्ध करने में कठिनाई आती है ।
( 6 ) अवकाश की सम्भावना कम - इस प्रकार की खेती में कई प्रकार के कार्य करने पड़ते है । और अवकाश नहीं मिल पाता है , जिससे किसान की कार्यक्षमता पर बुरा असर पड़ता है ।
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