मिश्रित खेती ( Mixed Farming )

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 मिश्रित खेती ( Mixed Farming ) - मिश्रित खेती के अन्तर्गत फसलों के उत्पादन के साथ - साथ पशुपालन या डेरी उद्योग भी किया जाता है । भारतवर्ष में कृषि के साथ पशु वर्ग जुड़ा हुआ है , क्योंकि पशु खेती में शक्ति के मुख्य स्रोत के रूप में प्रयोग में लाए जाते है । दूध देने वाली गाय व भैस प्रायः प्रत्येक किसान के पास होती हैं । भारत जैसे देश में जहाँ खेती में मशीनों का प्रयोग कम किया जाता है , मिश्रित खेती एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है । यह एक प्रकार की बहुप्रकारीय खेती ही है , जिसमें पशुपालन व फसल उत्पादन एक दूसरे पर पूर्णतया निर्भर रहते हैं ।

 मिश्रित खेती के लाभ अथवा गुण 

( 1 ) पशुपालन द्वारा खेती के लिए बैलों की प्राप्ति - प्राय : घर की गाय , भैंस से कृषि के लिए अच्छे बैल एवं भैंसे प्राप्त हो जाते हैं और उनके लिए अतिरिक्त धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं रहती ।

 ( 2 ) खाद की व्यवस्था - पशु से प्राप्त गोबर व मूत्र से खेती के लिए अच्छी खाद प्राप्त हो जाती है ।

 ( 3 ) अतिरिक्त ऊर्जा की प्राप्ति - पशुओं के गोबर से आधुनिक ऊर्जा के साधन ' गोबर की गैस ' प्राप्त की जा सकती है , जो पारिवारिक तथा कृषिगत कार्यों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है । 

 ( 4 ) भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि - गोबर की खाद देने तथा भारे व दात की फसले उगाने से भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है । 

( 5)  श्रमिकों का उचित उपयोग - फार्म पर काम करने वाले श्रमिकों को पूरे वर्ष रोजगार मिलता रहता है । 

( 6 ) उप - पदार्थों का सदुपयोग - मिश्रित खेती में फसल में उप - पदार्थों का उचित उपयोग हो जाता है , जैसे गेहूं का भूषा पशुओ के चारे के रूप में काम आ जाता है । 

( 7 ) आय लगातार मिलती रहती है - सहायक कार्योंं के कारण जैसे दूध , घी , आदि बेचने से किसान को वर्ष पर लगातार आय प्राप्त होती रहती है ।

 ( 8 ) पारिवारिक उपभोग की सामग्री की उपलब्धि - किसान को अपने तथा अपने परिवार के उपयोग के लिए दूध , दही , अण्डे , ईंधन आदि प्राप्त हो जाता है । 

( 9 ) प्राकृतिक प्रकोपों से हानि की सम्भावना कम - प्राकृतिक प्रकोप में यदि किसी एक धंधे मे हानि होती है तो दूसरे से उसको पूर्ति सम्भव है । 

 मिश्रित खेती की सफलता के लिए आवश्यकताएँ

 ( 1 ) अनावश्यक पशुओं को फार्म पर नहीं रखना चाहिए , केवल उतने ही पशु रखने चाहिए जिनका चारा - दाना फार्म से मिल जाए ।

 ( 2 ) केवल आर्थिक और उपयोगी पशु ही रखने चाहिए ।  

( 3 ) मिश्रित खेती की सफलता के लिए आवश्यक है कि उचित प्रकार के फसल - चक्र अपनाए जाएं , जिससे कृषक की आवश्यकताओं के साथ - साथ  पशुओं की आवश्यकता वाली चारे की फसले भी उगाई जा सके । 

( 4 ) दूध व इससे बनी वस्तुओं जैसे घी , खोया आदि की बिक्री की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए ।

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