Sustainablel Agriculture( स्थाई खेती )

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स्थायी खेती से अभिप्राय ( Meaning Sustainablel Agriculture ) - स्थायी खेती जैसा कि नाम से स्पष्ट है ऐसी खेती जिसमें स्थायित्व  हो ।स्थायित्व से अभिप्राय कृषि का एक ऐसा स्वरूप जो प्राकृतिक सम्पदाओं ( भूमि , जल पर्यावरण आदि ) को सुरक्षित रखते हुए वर्तमान में कृषि सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करें आज बढ़ती हुई जनसंख्या को दृष्टिगत रखते हुए स्थायी खेती का महत्त्वपूर्ण स्थान है । मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन किया है फलस्वरूप पूरा पारिस्थितिकी तन्त्र ( Ecological System ) बिगड़ गया है । कृषि से अधिक पैदावार की प्राप्ति हेतु रसायनों के प्रयोग से भूमि की उत्पादकता में कमी एवं पोषक तत्वों में कमी देखने में आती है खाद्यान्नों में विषाक्तता , जल एवं वायु का प्रदूषण , जीन क्षरण आदि विभिन्न समस्यायें पैदा हो गई है । वर्तमान में इन्हीं समस्याओं के निराकरण हेतु कृषि वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ और स्थायी खेती की ओर ध्यान दिया जाने लगा । स्थायी खेती प्रणाली से तात्पर्य ऐसी प्रणाली विकसित करने से है जिसमें निरंतर उत्पादन में वृद्धि हो और साथ ही साथ प्राकृतिक संसाधनों को भी सुरक्षित रखा जाये ।
स्थायी कृषि खेती की परिभाषा ( Definitation of subtainable  स्थायी खेती को कृषि वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है कुछ परिभाषाएँ  
निम्न प्रकार हैं -
1. हार्वुड के अनुसार " स्थायी कृषि प्रणाली एक ऐसी खेती की पद्धति है जो मानव के लिए असीमित काल तक उपयोगी हो , जिसमें संसाधनों का उपयोग अधिक सक्षम या प्रभावकारी ढंग से किया जाये तथा पर्यावरण संतुलन बनाये रखे साथ ही मनुष्य एवं अन्य जैव प्रजातियों के लिए अनुकूल हो।" 
2. खाद्य एवं कृषि संगठन ( FAO ) 1993 के अनुसार- " कृषि संसाधनों का सफलतम प्रबन्ध करना ताकि नई - नई आवश्यकताओं की पूर्ति हो , साथ ही पर्यावरण सुघरे अर्थात् गिरावट आये और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा हो सके । " 

3. ICRISAT हैदराबाद ( 1993 ) के अनुसार- “ कृषि एवं प्राकृतिक संसाधनों का सफल प्रवन्ध करना , ताकि निरन्तर फसल उत्पादन में वृद्धि से मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हो , साथ ही पर्यावरण सुधरे और प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य में सुरक्षित रख सकेंं , टिकाऊ खेती कही जाती है ।

4. डॉ . पंजाब सिंह पूर्व डायरेक्टर ज ० आई ० सी० ए ० आर ० नई दिल्ली के अनुसार - वह खेती जो  मानव की वर्तमान एवं भावी पीढ़ी की अन्न , वस्त्र तथा ईंधन की आवश्यकताओं को पूरा करे जिसमें परम्परागत ( ITK- किसानी अनुभव ) विधियों एवं नई तकनीको का समावेश हो भूमि पर दबाव कम पड़े , जैव - विविधता नष्ट न हो , रसायनों का कम प्रयोग , जल एवं मृदा प्रबन्ध सही हो , टिकाऊ खेती कहलाएगी । " 

5. प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ ० एम ० एस ० स्वामीनाथन ( 1993 ) के अनुसार- " बदलते पर्यावरण अर्थात् धरती के तापक्रम में वृद्धि , समुद्र स्तर में बढ़ोत्तरी एवं ओजोन की परत मे क्षति आदि नई उत्पन्न क्षमताओं मे कृषि को टिकाऊपन देने के साथ - साथ दुनिया की बढ़ती आबादी को अन्न खिलाने के लिए उत्पादकता के स्तर पर लागत वृद्धि करना ही टिकाऊ खेती है ।

स्थायी खेती का क्षेत्र ( ( Scope of Suitainable Agriculture )- स्थायी खेती के अन्तर्गत उन सभी क्रियाओं को सम्मलित किया जाता है जिनसे बदलती मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ - साथ पर्यावरण की सुरक्षा हो तथा उपलव्य प्राकृतिक संसाधनो का क्षय भी न होने पाये । इस दृष्टिकोण से स्थाई कृषि में भूमि , वन्य प्राणियो , फसलोंं, पशुपालन , वन संरक्षण , फसल आनुवांशिकी , मृदा उर्वरता , समन्वित कृषि तकनीक , जल प्रबन्धन , फसल सुरक्षा , कार्बनिक खेती आदि का समन्वय किया गया है । स्थायी खेती आर्थिक जीवन्तता , सामाजिक स्वीकार्यता एवं वातावरणीय पूर्णता पर आधारित खेती है ।

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