गुलाब की कृषि ( Cultivation of Roses )
सौन्दर्य और सुगन्ध में गुलाब का फूल सर्वोत्तम माना जाता है । भारत में गुलाब को ' फूलों का राजा ' की संज्ञा दी गई , जबकि यूरोप में गुलाब को ' फूलों की रानी ' ( Queen of flowers ) कहा जाता है । महाकवि कीट्स की इन पंक्तियों से गुलाब के महत्व का पता चलता है ।
" A butterfly with golden wing broad parted nested a rose , convuls'd as though is smarted with over pleasure . " - Keats
गुलाबों के बिना अलंकृत उद्यान अधूरा समझा जाता है । " रोज गार्डन " उद्यान का एक अति - आवश्यक अंग होता है ।
स्थान ( Site ) -
गुलाब की क्यारियों ( beds ) की स्थिति पेड़ों की छाया तथा बाड़ ( hedge ) से दूर प्रकाशमय स्थान पर होनी चाहिये , जिससे कि पौधों को सूर्य का प्रकाश लगभग पूरे दिन मिल सके।
क्यारियों की आकृति ( Shape of the Beds ) -
क्यारियाँ आयताकार ( rectangular ) , वर्गाकार
( square shaped ) , अंडाकार ( oval shaped ) , वृत्ताकार ( circular ) या सुन्दर आकृति की बनायी जाती है । गुलाब को क्यारियों में लगाना अच्छा एवं सुन्दर प्रतीत होता है । अच्छा यह रहता है कि अलग - अलग किस्मों के गुलाब अलग - अलग क्यारियों में लगाये जाये । जब एक क्यारी में , समूह में गुलाब की कई किस्में लगाई जाती है तो पौधों की ऊँचाई तथा फूलों के रंगो के अनुसार सावधानी पूर्वक लगाना चाहिये । लम्बी किस्में क्यारी में सबसे पीछे की पंक्तियों में , मध्यम ऊंचाई की बीच की पंक्तियों में तथा छोटी किस्में आगे की पंक्तियों में लगानी चाहिये । रंगों के संयोग मिलते - जुलते ( harmoneous ) तथा सुखदायक ( pleasing ) होने
चाहिये ।
भूमि तथा उसकी तैयारी ( Soil and its preparation ) -
गुलाब के लिये दोमट तथा हल्की दोमट भूमि अच्छी होती है , परन्तु यह लगभग सभी प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है । भूमि में जल निकास की सुव्यवस्था होनी चाहिये , क्योकि जल - निमग्न ( water - logging ) दशाओं में गुलाब नहीं पनपता है । यदि मृदा भारी ( heavy soil ) है तो उसमे बालू मिला देना चाहिये । क्यारियों को 2 फीट गहराई तक खोदना चाहिए उसे लगभग 15 दिन तक खुला छोड़ देना चाहिये । उसके बाद 1 भाग अच्छी प्रकार से सड़ी - गली गोबर की खाद , 2 भाग मिट्टी के साथ मिलाकर गड्ढों या क्यारियो को भर देना चाहिये । क्यारियों को बरसात में स्थिर होने देना चाहिये ।
गुलाब के प्रकार ( Types of Rose )
अब गुलाब की 6 मुख्य प्रकार उद्यानों में लगायी जाती है , ये हैं 1. हाईब्रीड टी ( Hybrid Tea )
2. फलोरीबुन्डा ( Floribunda )
3. पोलीअन्था ( Polyantha )
4. आरोही एवं रैम्बलिंग ( Climbing and rambling )
5. मीनएचर ( Miniature )
6. क्षुप ( Shrub Rose )
प्रवर्धन की विधियाँ ( Methods of Propagation )
गुलाब के प्रवर्धन की निम्नलिखित विधियाँ हैं
1. बीज ( Seed )
2. कलम ( Cutting )
3. दब्बा लगाना ( Layering )
4. चश्मा लगाना ( Budding )
5. रोपण ( Grafting )
पौधे लगाने का समय ( Time of Plantation ) -
उत्तरी भारत के मैदानों में गुलाब लगाने का सबसे अच्छा समय सितम्बर से नवम्बर तक है । हालांकि जल्दी पौधे लगाने से दिसम्बर तक अच्छी प्रकार फूल आने लगते हैं। गुलाब सदैव शाम के समय लगाने चाहिये ।
फासला ( Distance ) -
झाड़ीदार ( bushes ) पौधों को 25-25 फीट के अन्तर से पंक्तियों में लगाना चाहिए । आरोही ( climber ) गुलाब 6 से 8 फीट के अन्तर से लगाने चाहिये ।
पौधे लगाने की विधि ( Method of Plantion ) -
पौधे लगाने के समय 3 फीट व्यास था 21 फीट गहरा गड्डा लगाने के स्थान पर बनाना चाहिए । पौधों की जड़ों के चारों ओर का तथा का चक्का ( Earth ball ) छिद्र ( hole ) के मध्य में रखना चाहिये । पौधों को भूमि के स्तर के बराबर ऊंचाई पर रखना चाहिए । गड्ढे में पौधे के चारों और भूमि सघन एवं संपीडन ( dense and compact ) कर देनी चाहिए । पौधे लगाने के समय 8 से 10 किलोग्राम गोबर का खाद प्रति पौधा डाल देना चाहिए ।
खाद एवं उर्वरक ( Manure and fertilizer ) -
गुलाब को खुराक से अधिक मात्रा में खाद नहीं देनी चाहिए , क्योकि नत्रजन की अधिकता से वनस्पतिक वृद्धि अधिक होती है । अक्टूबर में पौधों का कृन्तन करने के बाद , पौधे के चारों और की मृदा में गोबर का अच्छी प्रकार से सड़ा - गला खाद 8 से 10 किलो ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से डालकर मिला देना चाहिए । इसके अलावा लगभग 60 ग्राम हड्डी का खाद
( Bone meal ) प्रति पौधे के चारों ओर की मृदा में हैड फोर्क से मिला देना चाहिए । इससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है , वे स्वस्थ होते हैं तथा अच्छा पुष्पन होता है इसके 15 दिन बाद 60 ग्राम अमोनियम सल्फेट तथा 60 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति पौधे में डालकर गुड़ाई कर देनी चाहिए । जनवरी - फरवरी में अमोनिया सल्फेट तथा पोटेशियम सल्फेट की उपरोक्त मात्रा फिर से डाल देनी चाहिए । यह मात्रा पहली बार पुष्प आने के बाद डालनी चाहिए । फूलों के चमकीले रंग प्राप्त करने के लिये मैनिशियम सल्फेट 4 भाग तथा आयरन सल्फेट 1 भाग के मिश्रण को 14 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से डालना चाहिए । इसके अतिरिक्त 2 भाग यूरिया , 1 भाग डाइहाइड्रोजन अमोनियम फास्फेट , 1 भाग पोटेशियम नाइट्रेट तथा 1 भाग पोटेशियम फास्फेट का शाकीय छिड़काव ( foliar spray ) अच्छे परिणाम देता है । इस मिश्रण का 14 ग्राम प्रति गैलन पानी में घोल बनाया जाता है । अलग - अलग खाद देने से , मिश्रण खाद देना अच्छा रहता है ।
मिश्रण खाद
12 भाग सुपर फास्फेट ,12 भाग सोडियम नाइट्रेट मैगनिशियम सल्फेट 2 भाग ,आयरन सल्फेट 1 भाग ,कैल्शियम सल्फेट 8 भाग ,यह खाद का मिश्रण 125 ग्राम प्रति पौधे के हिसाब से देना चाहिए । खाद देने के उपरान्त मृदा में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिए ।
पानी देना ( Watering ) -
गुलाब के पौधों की आपेक्षित अधिक अन्तर से भारी सिंचाई करना , बार - बार कम पानी देने से अच्छा रहता है । शीतकाल में प्रति सलाह अच्छी प्रकार पानी देना अच्छा रहता है । ग्रीष्म काल में आवश्यकतानुसार अधिक मात्रा में पानी देना पड़ता है । गुलाब के लिये जल - निमग्न अवस्था ( Water logging condition ) हानिकारक होती है ।
कर्षण क्रियायें ( Interclture ) -
पानी देने के बाद भूमि की अवस्था ठीक होने पर हल्की निराई - गुड़ाई करने से भूमि भुरभुरी हो जाती है , जिससे मृदा संवातन ( soil acration ) इच्छा हो जाता है । खरपतवार नष्ट कर देने चाहिये ।गुलाब में मूल वृत ( root stock ) निकल जाते हैं । उनकी पहचान करके , काटकर निकाल देना चाहिए।
कृन्तन ( Pruning ) -
उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में गुलाब का कुन्तन ( pruning ) अक्टूबर में किया कृन्तन करने के 6-7 सप्ताह बाद पौधों में फूल आने प्रारम्भ हो जाते हैं । कृन्तन ( pruning ) करने के बाद 3-4 दिन पहले पानी देना बन्द कर देना चाहिये । सिरों को तोड़ ( tipped ) देते हैं । सामान्यत : नये ( maiden ) पौधो का कृन्तन नहीं किया जाता है लगाते समय केवल इनके सामान्यत : पुराने हाइब्रीड टी आस ( HT ) किस्मों की झाड़ियों ( bushes ) की सभी पुरानी तथा अलाभदायक शाखाओं को काट दिया जाता है तथा पौधे की लगभग आधी ऊँचाई ही छोड़ी जाती है प्रत्येक तने पर केवल 6 या 7 अखुएं ( eyes ) ही छोड़े जाते है । तने के ऊपरी बाहर की ओर वाली कलिका के थोड़ा ऊपर से काटा जाता है । बड़े फूल प्राप्त करने के लिये केवल 3-4 कलियों को छोड़कर कृन्तन किया जाता है । फ्लोरीबुन्डा ( floribunda ) किस्मों को मध्यम रूप से काटा - छांटा जाता है । नयी वृद्धि की हुई शाखाओं को ऊपर वाले अच्छे पुष्प - कलियों के गुच्छे तक काट दिया जाता है जबकि 2 वर्ष पुराने गुलाबो को आधी ऊँचाई तक काट दिया जाता है । अधिक ओजस्वी पौधों की नयी शाखाओं को भी काट दिया जाता है । आरोही ( climbing ) एवं रेम्बलिंग ( ramling ) गुलाबो की कटाई - छंटाई की आवश्यकता नहीं होती है । केवल इनकी अस्वस्थ मृत उलझी शाखाओं को काट दिया जाता है । स्टैन्डर्ड ( standard ) तथा पोलीअन्या ( polyantha ) किस्मों का हल्का कृन्तन किया जाता है । आमतौर से मीनएचर ( miniature ) किस्मों का कृन्तन नहीं किया जाता है ।
रोग तथा कीट ( Disease and Insects )
रोग ( Disease ) -
सामान्यत : गुलाब पर डाईबैक ( Die back ) तथा ब्लैक स्पोट ( black spot ) नामक रोग लगते हैं । डाई बैक से तना काला पड़ जाता है तथा सूखने लगता है । ये करने बाद काटे गये सिरों से आरम्भ होता है । अत : इन पर कवकनाशी पेन्ट ( fungicidal paint ) , जिसमें 4 भाग कॉपर कार्बोनेट , 4 भाग रेड लैंड तथा 5 भाग अलसी का तेल होता है , का लेपन ( paint ) कर देना चाहिये । ब्लैक स्पोट ( black spot ) रोग पर बोर्डो मिश्रण , कैप्टान , ब्लीटाक्स या कॉपर कवकनाशी के छिड़काव से नियन्त्रण किया जा सकता है । चुर्णील आसित ( Powdery Mildew ) पर सल्फर या कैराथैन के छिड़काव से नियन्त्रण किया जा सकता है ।
कीट पीड़क ( Insect pests ) -
गुलाब पर एफिड्स ( aphids ) , चैफर बिटिल ( chafr beetle ) , रैड स्केल ( red scale ) , डिगर वासप ( digger wasp , thrips wasps ) , दीमक ( mites तथा White ants ) आक्रमण करते हैं । Aphids तथा Thrips पर पाइरोडस्ट के छिड़काव से नियन्त्रण किया जा सकता है । Chafer beetles तथा Thrips पर DDT के 0-2 % छिड़काव से नियन्त्रण किया जा सकता है । White ants , mites red scale आदि पर DDT या BHC के उपचार से नियन्त्रण किया जा सकता है ।
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