ग्लैडियोलस की खेती

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 ग्लैडियोलस की खेती ( Cultivation of Gladiolus ) 


ग्लैडियोलस एक उत्तम गुणवत्ता का शल्क - कन्दीय ( bulbous ) पौधा है । यह विच्छेदित पुष्पोंं
 ( Cutflower ) के लिए आदर्श है । इसके अतिरिक्त यह गमलों , क्यारियों तथा बोर्डर्स के लिये भी उपयुक्त होता हैं ।

                   वर्गीकरण एवं किस्में

            ( Taxonomy and varieties)

यह इरिडिएसी कुल का पौधा है । इसकी दो प्रमुख प्रकार होती है । 

                   1. बड़ी पुष्पीय
                ( LargeFlowered) 

           2. तितलियाँ एवं सूक्ष्मरूप 
          ( sutterfly and miniature ) 
ग्लैडियोलस के पुष्प बहुत से चमत्कारी रंगों के होते हैं - काला , सफेद , गुलाबी , बैगनी , लिलाक लाल , हरित तथा रंगों के बहुत से मंयोजनों के पुष्प उपलब्ध है । गलैडियोतस की विभिन्न किस्में उपलब्ध है - जैसे बिस , बिस , चैरी स्तोसम , कोरनस , डोनाल्ड़बड़ , डस्क , फ्रेन्डशिप , जैलिबार हैराल्ड , हाई फैशन , जो बैगनियर , लीलिब्लुष , मैलोडी , ऑस्कर , पीटर पियर , स्नो प्रिन्स , स्ट्रोमी वैदर , ट्रोपकि सीस , विकास , वाइल्ड रोज इत्यादि । इसके अतिरिक्त LL.H.R. हसार माटा , ( Indian Institute of Horticulture Research , Hessurghatta ) द्वारा संकर किस्मे निकाली गई है ।

  कृषण क्रियायें ( Cultural Practices ) 

स्थिति (Location ) -

ग्लैडियोलस  मैदानी क्षेत्रों से लेकर 250 m उच्चाश तक उगाया जा सकता है । इसके लिये अच्छी जल निकास वाली मृदा होनी चाहिये तथा उस स्थान को सूर्य का प्रकाश सुचारु से मिलना चाहिये परन्तु तेज वायु से सुरक्षा की स्थिति होनी चाहिये । 

भूमि की तैयारी एवं खाद ( Preparation of the soil and manure ) -

मृदा की गहरी जुताई करके अच्छी प्रकार से भुरभुरी कर लेनी चाहिए । भूमि की अन्तिम तैयारी के समय 5-6 kg गोबर का खाद एवं पत्तियों का खाद , 60 kg हड्डियों का खाद
 ( bonemeal ) प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र के हिसाब से डाल देना चाहिये । अत्यधिक खाद डालने से वनस्पतिक वृद्धि अधिक होती है एवं पुष्पीय स्पाइक अधिक लम्बी हो जाती है । गमलों में गलैडियोलस उगाने के लिये गमले की मृदा कम्पोस्ट में एक भाग अच्छी उद्यान मृदा , दो भाग गोबर की खाद या पत्तियों की
 खाद , 1/2 भाग मोटा बालु होना चाहिये । इसमें ? चम्मच बोन मील तथा थोड़ी मात्रा में राख मिला देनी चाहिये । 

रोपण का समय ( Planting Time )

मैदानी क्षेत्रों में लगाने का उपयुक्त समय सितम्बर तथा अक्टूबर होता है । पर्वतीय क्षेत्रों में मई तथा जून में रोपण किया जाता है । वर्ष के दूसरे समय में जलवायु एवं परिस्थितियों के अनुसार पुष्प लेने के लिए रोपण किया जा सकता है । पूर्वी भारत में मानसून समाप्त हो जाने के उपरान्त रोपण किया जाता है । निरन्तरता से पुष्प लेने के लिए 7-10 दिन के अन्तराल से उत्तरोतर रोपण करना विपणन के लिये अच्छा रहता है । 

प्रवर्धन एवं रोपण विधि ( Propagation and Planting Method ) -

गलैडियोलस का सामान्यत : घनकन्दो ( Corms ) के द्वारा वनस्पतिक प्रवर्धन किया 
जाता है । 
हालांकि इसे बीजों द्वारा भी उगाया जा सकता है परन्तु लैंगिक प्रवर्धन से विभिन्नताये उत्पन्न होती है अत : बीजो का प्रयोग केवल प्रजनन के लिये ही किया जाता है । शीघ्र गुणिता 
( multiplication ) के लिये घनकन्दों को रोपण से 24 घन्टे पहले जल में भिगो ( Soaking ) दिया जाता है । घन - कन्दों
 ( Corms ) के ऊपर की भूरी शल्को को सावधानीपूर्वक बोने से पहले उतार दिया जाता है । अच्छी पुष्पण प्राप्त करने के लिये 2-3 पुनरावृतित रोपण करने चाहिये । अच्छे परिमाण के पुष्षण प्राप्त करने के लिये 4-5 cm आकार के घनकन्दो ( Corms ) का रोपण करना चाहिये । प्रदर्शनी हेतु बड़े पुष्पण प्राप्त करने के लिये 7-10 cm व्यास के घनकन्द का रोपण करना चाहिये । ऊँचे शीर्ष वाले घनकन्द आपेक्षित अच्छे 
रहते है । रोगों के नियन्त्रण के लिए रोपण से पहले घनकन्द प्रतिशत कैपटान या 0 1 प्रतिशत बैनलेट के घोल में आधे घन्टे तक डुबों कर रखना चाहिये यदि धन कन्दों में बोने से पहले अकुरण प्राप्त कर लिया जाता है तो अच्छा रहता है । घन कन्दों को 5-73 cm नम - बालु में दबा देने से अंकुरण प्राप्त किया जा सकता है । धन - कन्दों को 15-25 cm की दूरी पर रोपित किया जाता है तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 cm रखी जाती है । धनकन्दों को 3.5 cm गहरा रोपित करते हैं।

 खाद एवं उर्वरक ( Manure and Feritlizers ) - 

सामान्यतः गोबर का खाद एवं पत्तियों का खाद मध्यमान मात्रा में डालना उपयुक्त होता है अत्यधिक खाद डालने से वनस्पतिक वृद्धि अधिक होती है । नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों का घोड़ी मात्रा में डालना भी लाभप्रद होता है इसके अतिरिक्त द्रव्य खाद का टाप ईसिंग भी करना चाहिये । पुष्पण काल में मल्चिग करना चाहिये । 

सिंचाई ( Irrigation )

सामान्यतः प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिये । शीतकाल में दस दिन के अन्तराल से सिंचाई करना उपयुक्त रहता है । 

सहारा प्रदान करना ( Staking ) - 

पुष्पण शाखाओं या स्पाइकों के निकलने पर बास के डन्डों से सहारा प्रदान करना चाहिये क्योंकि तेज वायु से स्पाइको के टूटने का भय रहता है । सामान्यतः पिनके लगे पौधों तथा तितलीय तथा सूक्ष्म प्रकारों में सहारा प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होती है ।

 पुष्पों को काटना ( Cutting of Flowers ) - 

जब सबसे नीचे की पुष्पिका ( foret ) में रंग विकसित हो जाता है तब स्पाइक को काटने का उपयुक्त समय होता है स्पाइक को तेज चाकु के आधार के पास से काटना चाहिये तथा पर्णीय भाग ( foliage ) को न्यूनतम हानि होनी चाहिये । स्पाइकों को काटने के तुरन्त बाद जल से भरी बाल्टी में रख देना चाहिये । कटे भाग की ओर से जल में डूबो कर रखते है । गुलदस्ते के रखने पर ऊपर की स्पाइक उत्तरोतर रूप से खिलती रहती है । गुलदस्ते में पुष्पण की आयु बढ़ाने के लिये एकान्तर दिवस में स्पाइक के आधार से 15-2cm भाग काटते रहना चाहिये जिससे जाइलम नलिकाओं में जल की आपूर्ति अवरुद्ध नहीं होती है । गुलदस्ते का जल एक - दो दिन के अन्तर से शुद्ध जल से बदल देना चाहिये । गुलदस्ते में 8 HOC ( 8 hydroxy quinoline citrate) 6 ppm तथा 4 प्रतिशत सुक्रोस मिलाने से विच्छेदित पुष्पों को आयु बढ़ती है 
सलवन ( Harvesting ) - वनस्पतिक प्रवर्धन के लिए
 घन - कन्द विकास हेतु पौधे पर बीज नहीं बनने देना चाहिये क्योकि बीज बनने से धनकन्दों को जीवन क्षमता समाप्त हो जाती है । जब पत्तियां पीली पड़कर मृत अवस्था की प्रतीत होने लगती है तभी भूमि से घन कन्दो एवं धन कन्दिकाओं को फोर्क से खोद कर निकाल लेना चाहिये । धनकन्दों व घन कन्दिकाओं को आघात से बचाना चाहिये । 

भण्डारण ( Storage ) -

 संग्रह से पहले घन - कन्दों को अर्ध- साये में सुखा लेना चाहिये तदोपरान्त 5 प्रतिशत DDT पुल में मिलाकर शीत कमरों में ट्रे या पोलिथीन के थैलों में रखकर भण्डारित कर लेना चाहिये। पोलिथीन के थैलों को छिद्रित कर लेना चाहिये । शीत गृहों में भण्डारित करना सर्वोत्तम होता है । रोगों से सुरक्षा के लिये भण्डारण से पहले 0.1 प्रतिशत बैनलेट या 0.2 प्रतिशत कैपटान से उपचारित कर लेना चाहिये ।



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