हरियाली ( Lawn )

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हरियाली ( Lawn)



हरियाली ( Lawns ) वह निश्चित स्थान होता है , जो कि पूर्णरूपेण घास से ढका हो । हरियाली उद्यानों ( Lawns ) में हरे गलीचे के सामन लगती हैं । वियलम रोबिनसन के अनुसार हरियाली उद्यान का हृदय होती है एवं यह उसकी सबसे सुखद वस्तु होती हैं ।
 " The lawn is the heart of the garden and the happiest thing that is in it . " - Robinson हरियाली के महत्तव का पता बैकन की इन पंक्तियों से चलता है
 " Nothing is more pleasant to the eyes than a green grass kept finely shorn ."
 हरियाली उद्यान का आवश्यक अंग होती है । हरियाली से भूमि का आधार शोभायमान होता है , जिसका कोई विकल्प 
( alternative ) नहीं है । आधुनिक अलंकृत उद्यानों में हरियाली मुख्य शिल्प कला के समान है । हरियाली के साथ पुष्प क्यारियों , अलंकृत क्षुपों ( ornamental shrubs ) एवं शरबरी ( Shrubbery ) के संयोग से इनकी सुन्दरता का प्रभाव बढ़ जाता है हरियाली आँखों को अतीव आनन्द एवं शीतलता प्रदान करती है । ये विशेष आकर्षण के केन्द्र होते है । इनसे गर्व तथा आध्यात्मिक शान्ति मिलती है । हरियाली राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक मानी जाती है । 


स्थान एवं भूमि ( Location and Soil )  

नया लॉन लगाने के लिये लॉन की स्थिति सावधानीपूर्वक निश्चित करनी चाहिये । लॉन की स्थिति ऐसे स्थान पर होनी चाहिये , जहाँ से उद्यान के अधिकतर भाग दृष्टिगोचर हों तथा उद्यान की अन्य आकृतियाँ लॉन के संयोग से अधिक प्रभावी लगे । लॉन की स्थिति मकान की खिड़कियों तथा दरवाजों के सामने उपयुक्त रहती है । लॉन का आकार वर्गाकार या आयताकार अच्छा रहता है । लॉन के लिये स्थान खुला होना चाहिये तथा उस पर सूर्य का प्रकाश ठीक पड़ना चाहिये , क्योंकि सूर्य का प्रकाश हरियाली के लिये प्राणस्वरूप होता है । लॉन की भूमि में वृक्षों की जड़े नहीं फैली होनी चाहिये तथा वृक्षों की छाया नहीं पड़नी चाहिये । भूमि में जल - निकास ( drainage ) की उचित व्यवस्था होनी भूमि क्षारीय ( alkaline ) या अधिक अम्लीय ( acidic ) , नहीं होनी चाहिये । लॉन के घास के लिये दोमट या बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है ।

 भूमि की तैयारी ( Preparation of the Soil )

लॉन के लिये भूमि की तैयारी ग्रीष्म ऋतु में करना अच्छा रहता है । पहले 2 से 3 फीट गहराई तक मिट्टी खोद कर कुछ समय तक खुला छोड़ देते हैं , जिससे सूर्य के तेज प्रकाश से भूमि का जीवाणुनाशन ( sterlization ) हो जाये । इससे भूूूमि में उपस्थित कीट तथा खरपतवार नष्ट हो जाते हैं । इसके बाद मिट्टी को 2-3 बार पलट दिया जाता है तथा उसे समतल कर देते हैं।

 भूमि  का संपीडन ( Consolidation of Soil ) 

भूमि को गहराई तक खोदने से मिट्टी पोली हो जाती है । इसे संपीडन करने की आवश्यकता होती है , क्योकि ऐसा न करने पर लॉन लगाने के बाद मिट्टी किन्हीं स्थानों पर बैठ जाती है , जिससे लॉन असमतल हो जाते हैं । संपीडन करने के लिये भूमि को लगभग एक फीट ऊंची मेडों द्वारा छोटी - छोटी क्यारियों में बाँट लेते हैं । फिर इनमें 10-15 सेमी० गहरा पानी भर देते हैं इससे मिट्टी बैठ जाती है तथा खरपतवारों के बीज अंकुरित हो जाते हैं । उन्हें निराई करके निकाल दिया जाता है । इस क्रिया को दो तीन बार दोहराया जाना चाहिये । लॉन के लिये लगाये गये पौधे , ऊपरी 4-6 इंच भूमि में ही उगते है । अतः इसकी उर्वरता के लिये 1 से 1.5 टन अच्छी प्रकार सड़ी - गली गोबर की खाद प्रति 1000 वर्ग फीट के हिसाब 2 से ऊपरी 4-6 इंच मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये । इसके अतिरिक्त लगभग 10 किलो ग्राम सुपरफास्फेट प्रति 1000 वर्ग फीट भूमि में डाल दी जाती है । अधिक अम्लीय भूमियों में चूना मिला दिया जाता  है।


भूमि को समतल करना ( Levelling of the Soil )

लॉन की भूमि समतल होनी चाहिये । लॉन की भूमि को घास लगाने से पूर्व ही समतल किया जाता है और चूना मिला दिया जाता है । भूमि को समतल बनाने में जल निकास की व्यवस्था का ध्यान रखा जाता है । जिस ओर जल - निकास 
( drainage ) की व्यवस्था है , उस ओर ढलाव रखा जाता है । प्रति 50 फीट पर 1.5 ईंंच का ढलाव आवश्यक होता है । भूमि को समतल बनाने के लिये निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग की जाती है

1.खूंटियों द्वारा- 

इस विधि में समान ऊंचाई की नुकीली खूंटियाँ ( 30 सेमी ० लम्बी , 5 सेमी ० मोटी , जिन पर 15 सेमी ० पर निशान हो ) , एक तख्ता ( 2 मी . 50 सेमी ० लम्बा तथा 10 सेमी 8 मी ० चौड़ा ) तथा एक स्प्रिट लेविल की आवश्यकता होती है । खूंटियाँ निशान तक भूमि में समानान्तर पंक्तियों में गाड़ दी जाती हैं । पंक्तियों से पंक्तियों का फासला तथा खूंंटी से खूंटी की दूरी 8 रखी जाती है । तख्ते को खूंटियों पर रखते है तथा तख्ते के ऊपर स्प्रिट लेविल रखते है , जिससे भूमि के रूतर की समानता निर्धारित करते हैं । जहां नीचा होता है , वहाँ पर मिट्टी डाल कर भूमि समतल कर देते हैं । ऊँचे स्थान से मिट्टी उठा कर नीचे स्थानों पर डाल देते है । इस तरीके से पूरे खेत को समतल कर देते हैं । इसके बाद भूमि में पानी भर देते हैं । पानी सूखने के बाद फिर से भूमि को समतल कर  देते हैं ।

 2. डम्पी लेविल ( Dumpy Level ) द्वारा -

 इस यन्त्र का प्रयोग भूमि के स्तर की समानता निर्धारित करने के लिये किया जाता है । 

 पानी द्वारा - 

यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है , कि द्रव स्थिर अवस्था में सदैव अपना स्तर समान रखता है । खेत को क्यारियों में विभाजित करके पानी भर देते हैं , इससे पानी की गहराई के आधार पर भूमि को समतल बनाया जाता है । क्यारियों की मेड़े भी समतल कर दी जाती है ।

 लॉन के लिये घास ( Lawn Grasses ) 

लॉन के लिये वह घास आदर्श मानी जाती है , जो जल्दी अंकुरित होती है , जिससे टर्फ ( turi ) तेजी से बनता है , जो नियमित रूप से काटने पर भी बना रहता है , सूखा अवरोधक ( drought resistant ) तथा रोग अवरोधक ( disease resistant ) होता है , जो हर ऋतु में अपना रंग बनाये रखता है तथा जो ठण्डे मौसम को सहन कर लेता है । भारत में इनमें से अधिकतर गुणों वाली घास दूब घास ( Cynodon dactylon ) है , जो कि अधिकतर लॉन में लगायी जाती है । लॉन के लिये प्रमुख घास निम्नलिखित है
 1. दूब घास- Bermuda grass ( Cynodon dactylon ) 
2. पोआ घास- Kentucky Blue grass
 ( Poa pratensis ) 
3. फैरक्यू घास- Chewing fescue ( Festua nubra fallax ) 
4. अग्रोटिस- Red Top ( Agrostis alca  )
5. क्लोवर घास- White clover ( Trifolium repense ) 
6. बैन्ट घास- Colonial bent grass ( Agrostis tenuis )
 7. बफैलो घास- Buffalo grass ( Buchloe dactyloides )
8. सैन्टोपिड- Centipede grass ( Eremchloe ophiuroides )
 9. अगस्टाइन घास- St. Augustine grass 
( Stenotaphum secundatium)
 10. कार्पेट घास- Carpet grass
 ( Axonopus compressus ) 
11. इटेलियनराई- Italian rye grass 
( Lolium mutifolium ) 
12. कनाड़ा ब्लूय घास- Canada Blue Gras
 ( Poa comprena )


लॉन में घास लगाने की विधि
 ( Method of Planting ) 


लॉन में घास लगाने के निम्न विधियाँ अपनायी जाती है 

1. बीज द्वारा ( By sced ) - 

बीज साफ , शुद्ध एवं अच्छी अंकुरण योग्यता का होना चाहिये । 20-25 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर की आवश्यकता पड़ती है । बीज बिखेर कर बोया जाता है । बीज समान रूप से बोना चाहिए । इस ध्येय की पूर्ति के लिये , बीज में बालू रेत या बारीक मिट्टी मिला लेनी चाहिये या बोने के बाद खेत में झाडू से मिला देना चाहिये । बीजों के अच्छे अंकुरण हेतु प्रतिदिन हजारे से पानी देना चाहिये । घास को 6-10 सेमी ० होने परउसकी पहली कटाई ( mowing ) कर देनी चाहिये । यह एक सरल एवं सस्ती विधि है , परन्तु इससे लॉन बनने में काफी समय लगता है । 


2. घास के टुकड़ों द्वारा ( By Turfing ) -

घास ( grass ) के 4-6 सेमी ० लम्बे टुकड़े काट लेते है । इन्हें समान रूप से पूरे खेत में बिखेर दिया जाता है । खेत को अच्छी प्रकार से पीटकर घास के टुकड़ों को मिट्टी में स्थिर कर दिया जाता है । घास के टुकड़ों को ठीक प्रकार से दबाने के लिये खेत में रोलर ( roller ) चला दिया जाता है । इसके बाद खेत की गहरी सिंचाई कर दी जाती है । इस विधि से लॉन जल्दी तैयार हो जाता है ।


 3. घास के टुकड़ों का लेपन ( Turf - plastering ) - 

दूब घास के 3-5 सेमी ० के टुकड़े काट लिये जाते हैं । इस घास के टुकड़ों को मिट्टी तथा खाद के मिश्रण में मिला लिया जाता
 है । 2 भाग घास के टुकड़े , 2 भाग गोबर की खाद तथा एक भाग दोमट मिट्टी मिलाकर पानी से लुगदी ( paste ) के समान तैयार कर लेते हैं । इस लुगदी ( parta ) को खेत मे लेप दिया जाता है । खेत में नमी बनाये रखने के लिये आवश्यकतानुसार हल्की - हल्की सिंचाई करते रहते हैं । 

4. डिवलिंग द्वारा ( By dibbling)- 

दूब घास के पौधों को जड़ सहित ले लिया जाता है । 4-6 पौधों को एक स्थान पर अंत में 15 सेमी ० के फासले से बनाये गये छेदों में लगा देते है तथा पौधों के पास मिट्टी को अच्छी प्रकार से दबा देते हैं । पौधे रोपने का कार्य खुरपे द्वारा भी आमानी से किया जा सकता है । रोपाई करने के उपरान्त खेत में रोलर चला दिया जाता है तथा इसके बाद सिंचाई कर दी जाती है । इस विधि में यह सावधानी रखनी चाहिये कि भूमि समतल बनी रहे ।

 
लॉन का रख - रखाव ( Malntenance of Lawn)

लॉन लगाने के उपरान्त लॉन का रख - रखाव अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होता है । सामान्यतः रख - रखाव के लिये निम्नलिखित क्रियागति नियमित रूप से करनी चाहिये 

1. सिंचाई ( Irrigation )

लॉन की घास के लिये पानी प्राण स्वरूप होता है । लॉन को सुन्दर एवं हरा - भरा बनाये रखने के लिये नियमित रूप से सिंचाई करना आवश्यक होता है । लॉन की अच्छी मध्यम क्रम की सिंचाई करनी चाहिये अधिक भारी सिंचाई से चूने के लवण भूमि से निकल जाते है , जिससे भूमि की अम्लीयता बढ़ जाती है तथा घास की वृद्धि पर खराब प्रभाव पड़ता है । ग्रीष्म काल में 4-7 दिन के अन्तर में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिये । शीतकाल में 7-12 दिन के अन्तर से सिंचाई करनी चाहिये । शीतकला में ओस काफी मात्रा में पड़ती है । सवेरे लकड़ी का रोलर घास पर चला देने से बूंदें नीचे गिर जाती है जिससे पानी की बूंदे भूमि मे गिर कर पौधे की जड़ों को प्राप्त होती है । लॉन की सिंचाई की कई विधियाँ अपनाई जाती है सरल एवं सामान्य विधि यह है कि लॉन को नाली में से पानी खोलकर भर दिया ( flood system ) जाता है ।
 दूसरी विधि में , रबर के पाइप लॉन में डाल दिये जाते हैं , जिनका सम्बन्ध ( connection ) टैप वाटर
 ( पानी के नल ) से कर दिया जाता है । लॉन स्प्रिंकलर नामक मशीन से सिंचाई करना सर्वोत्तम माना जाता है । इस मशीन को रबर के पाइप द्वारा नल से जोड़ देते हैं । इस मशीन से पानी की बूंदों का छिड़काव होता है ।


2. खरपतवार निकालना 

लॉन में लगाई गई घास के अलावा दूसरे पौधे नहीं उगने देने चाहिये , क्योंंकि इनसे लॉन खराब हो जाता है तथा ये लॉन की घास की वृद्धि को रोकते है । खेत की तैयारी के समय खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिये । लॉन लगाने के बाद भी कुछ खरपतवार उग आते हैं , जैसे कि मोथा ( Cyprus rotandus ) , कांस ( Saccharum spontaneum ) , दूधी ( Euphorbia ) दृष्य ऑक्जेलिस ( Oxalis ) इत्यादि । इन खरपतवारों को खुरपी से समूल निकालकर नष्ट कर देन पाहिये । लॉन के खरपतवारों को नष्ट करने के लिये खरपतवार नाशको ( weedicides ) का उपयोग करना चाहिये । लॉन के लिये निम्न खरपतवार नाशक ( weedicides ) हैं । 
2 , -4 - D ( 2,4 - Dichlorophenoxy Acetic Acid ) 
MCPA ( 2 Methyl 4 Chlorophenoxy Acetic Acid )
 2 , 4 , 5 T ( 2,4,5 Trichlorophenoxy Acetic Acid ) 
CMU ( Chlorophenyl - di - Methyle Urea ) 
इन खरपतवार - नाशकोंं का उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिये । क्योंंकि अधिक मात्रा में ये लॉन की घास के लिये भी हानिकारक हो सकते हैं ।


 3. खाद एवं उर्वरक ( Manures and Fortillzers) 

लॉन के लिये भूमि की तैयारी के समय कार्बनिक खाद ( organic manure ) पर्याप्त मात्रा में मृदा में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये । साधारणत : 1 से 1.5 टन गोबर की सड़ी - गली खाद प्रति 1000 वर्ग फीट डाल दी जाती है । लॉन की घास के लिये फास्फोरस बहुत अच्छा रहता है । अतः 10 किलोग्राम सुपर फास्फेट प्रति 1000 वर्ग फीट के हिसाब से डाल दी जाती है । लॉन लगाने के बाद घास को हरी रखने तथा उसकी अच्छी वृद्धि के लिये उर्वरको ( fertilizers ) का मिश्रण डालना आवश्यक होता है । 

उर्वरकों का मिश्रण 

2 भाग अमोनियम सल्फेट 
 1 भाग सुपर सल्फेट 
1 भाग मयुरेट ऑफ पोटाश
 उपरोक्त उर्वरकों का मिश्रण 3 किलोग्राम प्रति 100 वर्ग मी ० के हिसाब से फरवरी के बाद प्रति माह छिड़कना चाहिये ।
 लॉन के लिये द्रव्य रूप में उर्वरक डालना प्रभावकारी साबित हुआ है । 8 औस अमोनियम  सल्फेट का प्रति 5 गैलन पानी में घोल बनाना चाहिये । 
2 किग्रा ० अमोनियम सल्फेट प्रति 100 न वर्ग मीटर काफी होता है । द्रव्य उर्वरकों का प्रयोग प्रति माह नवम्बर के बाद शुष्क समय में व फरवरी तक किया जा सकता है । लॉन की घास की जड़ों की अच्छी वृद्धि तथा मृदा की अम्लीयता कम करने के लिये चूना ( Calcium carbonate ) 8 से 12 किलोग्राम प्रति 100 वर्ग फीट में डालना चाहिये । यदि कैलशियम की मात्रा काफी है तथा मृदा pH 5.5 से 6.0 तक है । , तो चूना डालने की आवश्यकता नहीं होती है । 

4. कटाई ( Mowing ) 

लॉन को सुन्दर तथा एक समान बनाये रखने के लिये घास की कटाई आवश्यक होती है । घास की 10-15 सेमी ० ऊँचाई हो जाने पर प्रथम कटाई ( moving ) को जानी चाहिये । पहली कटाई साइथ ( Scythe ) से करनी चाहिये। लॉन के खरपतवारों को नष्ट करने के लिये खरपतवार नाशको ( weedicides ) का उपयोग करना चाहिये । 
छोटे आकार के लॉन की कटाई घास काटने की कैंंची ( grass shear ) से भी की जा सकती है । परन्तु इससे घास एक समान ऊंचाई से नहीं काटती है । 
लॉन के पास की कटाई लॉन मुवर ( Lawn mover ) से की जाती है । इससे एक समान ऊंचाई से घास कटती है । लॉन मुवर का प्रयोग लॉन लगाने के तीन - चार माह बाद करन चाहिये । लॉन मुवर तीन प्रकार के होते हैंं -
 1. Hand Driven Mover 
2. Bullock Driven Mover 
3. Power Driven Mover
 छोटे आकार के लॉन में कटाई हाथ से चलाने वाले मुकर ( Hand Driven Mover ) से की जाती है । मध्यम आकार के लॉन की कटाई बैलों से चलने वाले मुवर ( Bullock Driven Mover ) से की जाती है । बहुत बड़े लॉन से ट्रैक्टर से चलने वाले लॉन मुवर ( Power Driven Mover ) का उपयोग किया जाता है । घास काटने के बाद लॉन को समता बनाये रखने के लिये रोलर चलाना चाहिये । 
लॉन की घास को काटने की ऊंचाई एक महत्त्वपूर्ण कारक है । अधिक नीचे से काटे गये लॉन सुन्दर प्रतीत होते है , परन्तु इन्हें अधिक उर्वरको तथा पानी की आवश्यकता पड़ती है । अतः कटाई की ऊंचाई इतनी रखनी चाहिये , जिससे लॉन सुन्दर प्रतीत हो तथा घास की वृद्धि भी ठीक हो । सामान्यत : लॉन मुवर को 1.5 इंच ऊंचाई पर रखा जाता है ।

 5. रोग एवं कीट ( Disease and Insects ) 

लॉन की घास में कभी - कभी कवक रोग ( fungus disease ) हो जाता है , जिससे कि लॉन में भूरे गोल - गोल आकार के छोटे - छोटे क्षेत्र बन जाते हैं । इससे लॉन खराब हो जाता है तथा भद्दा प्रतीत होता है । इसके नियन्त्रण के लिये 2 औंंस कॉपर सल्फेट 2.5 गैलन पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये । इनके अतिरिक्त केंंचुये , घोंघे , ग्रब्स , चीटियाँ तथा वेग वर्मस आदि भी लॉन को खराब करते हैं । हालांकि केंंचुए खेत की मृदा को उर्वरक बनाते हैं , तथापि इनके द्वारा निकाली गई मिट्टी से लॉन की सुन्दरता घटती है । इन पर लैंड आरसैनेट 10 पौंंड प्रति 1000 वर्ग फीट या DDT 10 % 5 पौड प्रति 1000 वर्ग फीट की बुरकन करके नियन्त्रण किया जा सकत है ।



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