केली की खेती

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केली की खेती ( Cultivation of Canna )


अलंकृत उद्यानों के लिये केली अति उत्तम पौधा है । विशेषत : यह क्यारियों में बहुत सुन्दर लगती है । केली की क्यारियाँ लान के किनारों पर बाड़ के आगे बहुत सुन्दर दृश्य उत्पन्न करती है । केली के फूलों के रंग बहुत आकर्षक एवं प्यारे होते हैं । फूलों का रंग भी विभिन्न प्रकार होता है । रंग की किस्म या कई रंगों की विभिन्न किस्मों को क्यारियों ( beds ) में लगाया जाता है । इससे सामूहिक प्रभाव ( group effect ) उत्पन्न होता है ।

 वर्गिकी एवं किस्में ( Texonomy and Varieties )

केली सीटैमीनी ( Scitamineac ) कुल का पौधा है । इसकी प्रजाति कैना ( Canna ) है । कैना प्रजाति की निम्न जातियाँ सुन्दर फूलोंं वाली हैंं -

1. कैना इन्डिका ( Canna indica )

यह मध्य तथा दक्षिणी अमेरिका और वेस्ट इण्डीज की मूल निवासी ( native ) है । यह लम्बी ( 150-200 cm ) बढ़ने वाली किस्म है । इसके फूलो का रंग पीला और लाल होता है ।

  2. कैना स्पीसियोसा ( Canna Specios )

इसका मूल निवास ( native ) भारत तथा ईस्ट इन्डीज है । इसकी लम्बाई 2 मीटर तक होती है । इसके फूलों का रंग चमकीला लाल होता है।

3. कैना फ्लैसिडा ( Canna Flaccida ) - 

इसकी लम्बाई 1.5-2 मीटर तक होती है तथा इसके फूलों का रंग लाल व पीला होता है । 

4. कैना लैटीफोलिया ( Cann Latifolia )

इसके पौधों की लम्बाई 3-5 मीटर तक होती है यह दक्षिणी अमेरिका का देशज है । इसके फूल लाल रंग के होते है । 

5. कैना लिलीफ्लोरा ( Canna Liliflora ) -

इसके पौधों की लम्बाई 1 से 3 मीटर तक होती है । इसके फूल सफेद एवं सुगन्धित होते हैं । 
इनके अलावा कैनाइटुलिस ( Canna edulis ) , कैना डिपाल्युसिस ( Canna depalcusis ) , कैना वारसिमिक्जी ( Canna warscemicri ) , कैना आरिपिक्टा ( Canna auropicta ) , कैना इरडिफ्लोरा ( Cann irdiflora ) आदि बहुत सी जातियाँ हैं केली का आधुनिक किस्में विभिन्न जातियों एवं किस्मो में संयोगों ( Crosses ) से उत्पन्न हुई है जैसे कि क्रोरोजि हाईब्रिड ( Crory hybrid ) एक बहुत प्रचलित समूह है । आम तौर से केली के दो वर्ग हैंं -

 1. आर्किडपुष्पीय ( Orchid Flowering ) -

इसके एक शीर्ष ( hcad ) के सभी फूल एक साथ नहीं खिलते हैंं ।

2. टाउस पुष्पीय ( Tauss Flowering ) -

 इसके फूल एक साथ खिलते है । यह अधिकतर पसन्द नहीं की जाती है । 
आधुनिक संकर किस्मोंं ( hybrid varieties ) की ऊंचाई 45-185 cm तक होती है इनके फूलों के रंगों में काफी विविधता पायी जाती है । सफेद , क्रीमी , पीला , गुलाबी , नारंगी , आरक्त , बैगनी लाल , गहरा - लाल इत्यादि विभिन्न रंगों की छाया ( shades ) पायी जाती है । इसकी पत्तियाँ बड़ी होती है । इसके शाकीय भागों का रंग ( foliage colour ) हरा ( green foliage ) या ब्रोन्ज रंग ( Bronze Colour foliage ) होता है ।

 केली की मुख्य किस्में निम्नलिखित है - 
रंग ( Colour ) - सफेद पीला
 लम्बी किस्में ( Tall verieties , 120-200 cm . ) (किस्में Varieties ) Radio , White Queen . Aurora Borealis , Buttercup , Canary Bird , Masterpicce . . Copper Giant , American Beauty , sunset , Rocamond नारंगी गुलाबी गुलाबी caler , Tango . Alipur Beauty , Apricot King , Damodar , Prince of wales , Rosca Gigantea , Corris , Mrs. Herbert Hoover . लाल एवं आरक्त Carmine King . Cleopatra , Statue of Liberty . Mohawk , The President , The Ambassader att for ( Dwarf Varieties , 45-105 cm . )
रंग ( Colour ) किस्में ( Varieties )- Centenaire Rozain , Daparting Day , Hungaria , Orange , King . Susquchana . नारंगी Orange glory , Orange Plum , Fairy Cleopatra . . पीली Star Dust , Apricot . Queen Charlotte , Saint Tropez , Black Night . 
लाल अन्य किस्में ( Miscellaneous Varieties ) किस्में ( Varities ) रंग ( Colour ) . Lanxaster , Percy लाल - पीले धब्बों वाली Cyclops , Gladiater , Mrs. Lancaster , Mikado . नारंगी - आरक्त पर लाल धब्बे King Humbert , Orange Glory . Black Night , King Humbert Trinicria veriegata ब्रोज पत्तियाँ चित्तिदार पत्तियाँ 

 प्रवर्धन ( Propagation ) 

केली के प्रवर्धन के दो विधियाँ है 
1. विभाजन ( Division ) 
2. बीज ( seed )

 1. विभाजन ( Division ) - 

आमतौर से केली का प्रवर्धन ( propagation ) प्रकन्दो rhizomes के विभाजन द्वारा किया जाता है । प्रकन्द ( rhizomes ) 15 सेमी ० गहरे लगाये जाते हैं।

2. बीज ( Seed ) - 

नई किस्मे प्रसंकरण ( hybridization ) के द्वारा उत्पन्न की जाती हैं । इसके लिये उन्हें बीज से उगाना पड़ता है । इसके बीजों का आकार छोटी मटर के बीज के समान होता है । इनका रंग काला तथा बीज चोल ( seed coal ) सख्त होता है । बीजों को sand paper पर रगड़ कर बोते है , जिससे बीज चोल फट जाये । भ्रूण ( Embryo ) को हानि नहीं पहुंचनी चाहिये । कभी - कभी अच्छे अंकुरण के लिये रात को पानी में भिगो कर या गोबर में रखकर बोया जाता है ।

 फूल आने का समय ( Time of Flowering ) -

 केली में फूल आने का समय अक्टूबर से दिसम्बर तथा अप्रैल से जून तक है । हालांकि यदा कदा वर्ष भर आते रहते हैं । 

भूमि ( Soil ) –

केली के लिए अधिक उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है इसके लिये नम , उर्वर भूमि होनी चाहिये । जल निकास की सुव्यवस्था होनी चाहिये । स्थान खुला एवं प्रकाशमय होना चाहिये ।

 क्यारियों की तैयारी ( Preparation of Beds ) - 

भूमि को 2 से 21 फीट गहराई तक खोद लेना चाहिए । भूमि के ऊपर 4 से 6 इंच मोटी अच्छी प्रकार सड़ी - गली गोबर की खाद डालकर भूमि में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये । केली के लिए क्यारियों की आकृति आयताकार , वर्गाकार , वृत्ताकार , अंडाकार , त्रिभुजाकार या षटभुजाकार बनायी जाती है । बौनी किस्मों को गमलों में भी उगाया जा सकता है । 

रोपण ( Planting ) - 

केली लगाने का सबसे उत्तम समय जौलाई अर्थात् वर्षा ऋतु का आरम्भिक काल है । हालांकि बरसात समाप्त होने पर भी केली लगाई जाती है । केली के प्रकन्दों ( rhizome ) को एक या दो अंखुओं सहित 15 से 30 सेमी ० लम्बे टुकड़ों ( pieces ) में विभाजित कर लेते हैं । प्रकन्दों ( rhizones ) को 15 सेमी ० गहराई में पंक्तियों में बोया जाता है । केली पंक्तियों में बोई जाती है । पौधे लगाने का दोनों ओर का फासला 45x45 सेमी ० रखा जाता है । जड़ों की अच्छी वृद्धि के लिए प्रकन्दों के नीचे बारीक रेत ( fine sand ) की पर्त लगा दी जाती है । प्रकन्द लगाने के बाद क्यारियों में पानी दे देना चाहिए । पानी देना ( Watering ) - नये लगाये गये प्रकन्दों को हजारे से हल्का पानी देना चाहिए । पौधों में नयी पत्तियाँ निकल आने पर भारी पानी देना प्रारम्भ कर देना चाहिए , क्योंकि केली को भारी सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है , परन्तु क्यारियों में पानी अधिक समय तक रुका रहना  हानिकारक होता है । ग्रीष्मकाल में 3-4 दिन के अन्तर से तथा शीतकाल में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी 
चाहिए।

खाद ( Manure ) - 

केली के लिए बहुत अधिक उपजाऊ भूमि की आवश्यकता पड़ती है । अतः काफी मात्रा में खाद देना अच्छा होता है । अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह में भूमि पर गोबर की खाद की पतली तह बिछाकर मृदा में अच्छी प्रकार मिला देना चाहिए । इसके अलावा 2 भाग पोटेशियम सल्फेट तथा 5 भाग अमोनियम फास्फेट का मिश्रण 50 ग्राम प्रति वर्ग गज भूमि पर वर्ष में तीन - चार बार डाल देना चाहिए । 

दोबारा लगाना ( Replanting ) -

प्रतिवर्ष जून में प्रकन्दों ( rhizormes ) को भूमि से निकाल कर आराम देना चाहिए । इसके बाद जौलाई में खेत की तैयारी करके दोबारा लगा ( replanting ) देना चाहिए । प्रकन्दों ( rhizomes ) को भूमि में से निकालने के पश्चात् विश्राम के लिये छाया में रेत के अन्दर दबाकर रखा जाता है ।

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